फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि और सोमवार के दिन होलिका दहन का त्योहार मनाया जाएगा। यह त्योहार हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक माना जाता है। इस बार ये त्योहार 9 मार्च को मनाया जाएगा। इस बार पूर्णिमा तिथि देर रात 11 बजकर 18 मिनट तक रहेगी| उसके बाद चैत्र कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि लग जायेंगी। शास्त्रों में फाल्गुन पूर्णिमा का धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व है। धार्मिक मान्यता के अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा का उपवास रखने से मनुष्य के दुखों का नाश होता है और उस पर भगवान विष्णु की विशेष कृपा होती है।
होलिका दहन के दिन को बुराई पर अच्छाई का दिन है। वहीं इसके दूसरे दिन एक-दूसरे को अबीर, गुलाल लगाकर होली का त्योहार खेला जायेगा। फ़िलहाल बात करते है होलिका दहन की। होलिका का ये त्योहार बहुत पुराने समय से मनाया जा रहा है। जैमिनी सूत्र में इसका आरम्भिक शब्दरूप ‘होलाका’ बताया गया है। वहीं हेमाद्रि, कालविवेक के पृष्ठ 106 पर होलिका को ‘हुताशनी’ कहा गया है। जबकि लिंगपुराण में फाल्गुन पूर्णिमा को ‘फाल्गुनिका’ कहा गया है। वहीं भारतीय इतिहास में इस दिन को भक्त प्रहलाद की जीत से जोड़कर देखा जाता है।
होली से संबंधी अन्य बातों को जानने के लिए देखें 9 मार्च की सुबह 7 बजकर 30 मिनट से इंडिया टीवी का खास शो ‘भविष्यवाणी’ आचार्य इंदु प्रकाश के साथ।
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त
आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार होलिकादहन का ये है शुभ मुहूर्त
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ: 9 मार्च सुबह 3 बजकर 5 मिनट से
पूर्णिमा तिथि समाप्त: 9 मार्च रात 11 बजकर 18 मिनट तक।
होलिका दहन का मुहूर्त: होलिका दहन प्रदोष काल के बाद किया जायेगा | क्योंकि 9 मार्च को 1 बजकर 11 मिनट तक पृथ्वी लोक की भद्रा रहेगी। जब चंद्रमा कर्क, सिंह, कुंभ और मीन राशि में होता है, तो पृथ्वी लोक की भद्रा होती है और आज चन्द्रमा सिंह राशि में है। इसके साथ ही आज से होलाष्टक भी समाप्त हो जायेंगे, जिसके चलते विवाह आदि सभी शुभ कार्य अब फिर से शुरू हो जायेंगे।
होलिका दहन की पौराणिक कथा
माना जाता है कि- प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नाम का अत्यंत बलशाली राजा था, जो भगवान में बिल्कुल भी विश्वास नहीं रखता था, लेकिन उसका पुत्र प्रहलाद श्री विष्णु का परम भक्त था। एक दिन हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद से तंग आकर, उसे मारने के लिये अपनी बहन होलिका को प्रहलाद के साथ अग्नि में बैठने को कहा। परन्तु होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त होने के बाद भी वह आग में जल गई और भक्त प्रहलाद बच गया। बुराई पर अच्छाई की इसी जीत के बाद ही होलिकादहन का यह त्योहार मनाया जाने लगा। होलिकादहन के समय ऐसी परंपरा भी है कि होली का जो डंडा गाडा जाता है, उसे प्रहलाद के प्रतीक स्वरुप होली जलने के बीच में ही निकाल लिया जाता है।